Why God have taken His Servent During the Time Of Corona?
Why God have taken His Servent During the Time Of Corona?
उपरोक्त प्रश्न आज पूरे मसीह समाज का हैं। हर एक ख्रीस्त यीशु पर विश्वास करने वाले व्यक्ति के जीवन में ये प्रश्न उभर रहा है, कि करोना महामारी में प्रभु की अपने सवको के प्रति क्या योजना है? हम प्रभु से कभी सवाल नहीं पूछ सकते हैं पर प्रभु के द्वारा दिए गए उसके वचन और पवित्र आत्मा की अगुवाई के अनुसार हम इन प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास कर सकते हैं।
प्रभु के ह्रदय की बात जाननी हो तो पवित्र आत्मा की आवाज़ सुननी पड़ेगी। *1 कुरन्थियों 2:10-11* के अनुसार *”परन्तु परमेश्वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।”*
इसलिए प्रभु की आत्मा के सिवाय प्रभु की बातें और कोई नहीं जानता।
एज्रा ने परमेश्वर की व्यवस्था का अध्ययन किया, और निम्नलिखित कारणों को पाया:
*1. गेहूं के दाने के समान मर जाना:- (To be fruitful for God)*
*2. क्लेश में जाने से सेवकों को बचाया जाना।*
*3. नयी पीढ़ी को तैयार करना-( New Generation-Joshua Generation)*
*4. लोगों को अपने तरीके से तैयार करना सीखाना। (चील के शावक का पंखों से उड़ना)*
*5. व्यवस्था का पूराना तरीका-आत्मा का नवीन तरीका*
1. *गेहुं के दाने मर जाते हैं-: यहुन्ना 12:24* *”मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।*
आत्मिक संसार में नया जन्म लिए हुए लोगों को भी गेहूं कहा जाता है। मौजूदा परिस्थितियों में जब पास्टरो और सेवकों को गेहूं के दाने से तुलना की जाए तो उनकी मृत्यु के पीछे प्रभु की बड़ी योजना छुपी हुई है। पिछले दिनों में बहुत से चरवाहों ने मृत्यु पायी है उनकी मृत्यु के बाद से, अनेक “शक्तिशाली अध्यात्मिक सेवक” बहुत से और गेहूं के दाने पैदा करने जा रहे हैं निश्चित रूप से इस वचन के अनुसार प्रभु की योजना हो सकती है।
2. *विपत्ति से सेवकों को छुड़ा लेना:-यशायाह 57:1-2*
*”धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिए जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिये उठा लिया गया कि आने वाली आपत्ति से बच जाए, वह शान्ति को पहुंचता है; जो सीधी चाल चलता है वह अपनी खाट पर विश्राम करता है।*
परमेश्वर पिता संसार में जो निश्चित रूप से आने वाले क्लेश से बचाने के लिए सेवकों को बुला ले रहे हैं।
*प्रकाशित वाक्य 14:13*
*”और मैं ने स्वर्ग से यह शब्द सुना, कि लिख; जो मुरदे प्रभु में मरते हैं, वे अब से धन्य हैं, आत्मा कहता है, हां क्योंकि वे अपने परिश्र्मों से विश्राम पाएंगे, और उन के कार्य उन के साथ हो लेते हैं।”*
*3. नेतृत्व का स्थानांतरण:-*मूसा से यहोशु*
वर्तमान में *(व्यवस्थाविवरण 31:7तब मूसा ने यहोशू को बुलाकर सब इस्राएलियों के सम्मुख कहा, कि तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो जा; क्योंकि इन लोगों के संग उस देश में जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजों से शपथ खाकर देने को कहा था तू जाएगा; और तू इन को उसका अधिकारी कर देगा*)
हम स्वर्गीय कनान देश के नज़दीक आ पहुंचे हैं हम प्रभु के राज्य के एकदम नजदीक समय में है।
जो चरवाहे प्रभु में सो गए उनके मार्गदर्शन और मध्यस्थता की प्रार्थनाओं के तहत मंडलिया चल रही हैं। पर जब मूसा जैसे अगुवो को प्रभु कहते हैं कि अब तुम्हारा नेतृत्व नयी पीढ़ी के जवानों (यहोशु की पीढ़ी) को सौंप देने की जरूरत है। क्योकि स्वर्गीय कनान देश के तरफ आगे बढ़ने के लिए प्रभु यहोशु जैसे जवानों, जोश और शक्ति से भरपूर ऐसे अगुवो को देने जा रहे हैं। इस कारण मूसा की मृत्यु आवश्यक है जिस से यहोशु की सेवकाई प्रारंभ हो सके।
मूसा की सेवा को प्रभु ने कुछ निर्धारित समय के लिए ही ठहराई हैं उसके बाद यहोशु की सेवा और नेतृत्व ठहराया हैं।
*4. प्रभु अपनी संतानों को उड़ना सिखने के लिए: (चील के बच्चे के समान)*
चील का शावक उड़ना सिखे इस कारण वह अपने बच्चों को घोसले से नीचे फेक देती है। घोसला विश्वासियों के कम्फर्ट ज़ोन का सूचक हैं। घोंसले के अन्दर जो बच्चे बैठे रहते हैं, उन्हें चील खुद खाना ढूंढ कर उनकी चोंच में देकर खिलाती है बच्चों को माता से पोषण एवं रक्षन के साथ-साथ पंखों से गर्मी भी मिलती है। लेकिन चील के शावक जीवन भर घोसले में ही रहे और चील उन्हें खिलाती रहे, ऐसा होता नहीं है।
*5. पूराना तरीका-नया तरीका (रोमियो 7:6)*
इसलिए, हम पुरानी व्यवस्था के अनुसार नहीं, बल्कि आत्मा के अनुसरण करने वाले नए तरीके के अनुसार सेवा करें। परमेश्वर के राज्य में यीशु मसीह के आने से पहले व्यवस्था पूरानी प्रणाली के अनुसार चलती थी। मूसा के समय व्यवस्था लागू हुई। लेकिन यीशु मसीह के आने के बाद वैध प्रतिशोध समाप्त हो गया। और प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु, दफन और पुनरुत्थान के द्वारा पवित्र आत्मा से कार्यरत नयी विधि प्रारंभ हुई।
जैसे जैसे समय बितता है बच्चे बड़े होते जाते हैं और उन्हें परीपक्व होने की जरूरत होती है। उन्हें खुद से उड़ना सिखना पड़ता है और खुद अपना खाना ढूंढना होता है।
अलग अलग पासवान द्वारा प्रभु ने अपने वचनों के अर्थ समझा कर हमे तैयार किया, हमे आत्मिक पोषण दिया। हमारे मुँह में वचन रुपी बीज डाला पर अब प्रभु हमारी आत्मिक निर्भरता दूर करना चाहते हैं। प्रभु हर एक विश्वासी को कोई मनुष्य पर नहीं परंतु यीशु पर पूर्ण से आश्रित हो जाए। प्रभु अपने बच्चों को उनके आत्मिक अधीकारो की पहचान करवाना चाहते(प्रभु के बेटे बेटियों के रुप में हमारे अधिकार क्या हैं एवं उनका उपयोग सिखाना चाहते हैं)